The opposition must understand

Editorial:विपक्ष को समझना होगा, एनडीए को देश ने दिया है जनादेश

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The opposition must understand

The opposition must understand that the country has given the mandate to the NDA प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह आरोप गंभीर है कि लोकसभा में विपक्ष ने ढाई घंटे तक देश के प्रधानमंत्री की आवाज को दबाने का प्रयास किया गया। उन्होंने इसे अलोकतांत्रिक ठहराते हुए विपक्ष की आलोचना की है। प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य में उजागर हुए रोष को समझा जाना चाहिए, क्योंकि नई लोकसभा के गठन के बाद पहले ही सत्र में जिस प्रकार से विपक्ष ने प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान भी टीका-टिप्पणी जारी रखी और उन्हें अपनी बात पूरी करने से रोकने का भरपूर प्रयास किया वह गरिमा हीन और अनुचित ही कहा जाएगा।

बेशक, मंत्रियों और सत्ता पक्ष के सांसदों के भाषण के दौरान विपक्ष के सांसदों की ओर से हल्ला-गुल्ला और टिप्पणियों का दौर चलता रहता है, लेकिन प्रधानमंत्री अगर अपनी बात कहने को सीट से उठ रहे हैं तो क्या सदन को इसका सम्मान नहीं करना चाहिए। हालांकि इस बार तो यह भी अनोखी बात सुनने को मिली, जब नेता विपक्ष राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि ओम बिड़ला बतौर स्पीकर प्रधानमंत्री के समक्ष झुकते हैं। उनका मंतव्य यह था कि प्रधानमंत्री मोदी इतने सर्वोच्च हैं कि लोकसभा स्पीकर अपने पद की गरिमा को कम करते हुए प्रधानमंत्री के समक्ष नतमस्तक होते हैं। यह काफी बेतुकी बात प्रतीत होती है, क्योंकि पदों के बावजूद सामाजिक शिष्टाचार अपनी जगह है, उसे कैसे भुलाया जा सकता है। क्या स्पीकर को अपने पद को बड़ा दिखाने के लिए प्रधानमंत्री की अनदेखी कर देनी होगी?

गौरतलब है कि विपक्ष की ओर से कुछ सांसदों को डांट कर चुप कराने के दौरान यह भी तुलना की गई है कि स्पीकर महज दो बार के चुनाव विजेता हैं, जबकि जिन्हें चुप कराया गया वे पांच बार के सांसद हैं। क्या इस प्रकार की तुलना उचित है। निश्चित रूप से पांच बार क्या कोई अगर इससे ज्यादा बार भी अगर निर्वाचित होकर सदन में पहुंचता है तो उसे स्पीकर पद नहीं मिल जाएगा। यह पद अनेक पैमानों पर और राजनीतिक विमर्श के बाद प्रदान किया जाता है। और वैसे भी सदन में अनुशासन कायम रखने की जिम्मेदारी स्पीकर की है, तब उन पर इस प्रकार के आरोप लगाना संसदीय परंपराओं का अपमान है।

ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी की ओर से बजट सत्र शुरू होने से पहले जो बातें कही गई हैं, वे विपक्ष की भूमिका पर सवाल उठाती हैं। उनका यह कहना भी उचित ही है कि विपक्ष को जनमत का फैसला स्वीकार करना चाहिए। वास्तव में विपक्ष के उन नेताओं के तेवर आजकल विचित्र ही हैं, जोकि अनुमान से कहीं बढक़र सीटें जीत कर सदन में पहुंचे हैं। उन्हें यह प्रतीत हो रहा है कि इस बार के लोकसभा चुनाव का जनादेश भाजपा और उसके सहयोगी दलों के लिए नहीं अपितु कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के लिए था।

हालांकि जनता में तमाम ऐसे समूह रहे होंगे, जोकि गुमराह होकर ऐसे फैसले लेते रहे, हालांकि देश की बड़ी आबादी ने इस बार भी भाजपा और उसके सहयोगी दलों को ही सरकार बनाने का जनादेश प्रदान किया है। यह अपने आप में स्पष्ट तथ्य है, लेकिन इसके बावजूद विपक्ष का यह रवैया चिंताजनक है कि जैसे उसके अधिकार का भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने भक्षण कर लिया। प्रधानमंत्री के भाषण के दौरान भी जिस प्रकार से विपक्ष की ओर से टिप्पणियां आती रहीं, वे यही बताती हैं कि विपक्ष उन्हें स्वीकार नहीं कर रहा।

कांग्रेस लगातार संविधान को क्षति पहुंचाने का आरोप भाजपा पर लगा रही है। लेकिन संसद में जिस प्रकार का आचरण विपक्ष की ओर से पेश किया जा रहा है और व्यर्थ के मुद्दे उठाकर समय और पैसे की बर्बादी करवाई जा रही है, क्या वह संविधान सम्मत है। क्या यही एकमात्र काम रह गया है कि हजारों करोड़ रुपये खर्च कर सरकार बने और फिर विपक्ष उसके गिरने के सपने लेता रहे और अगर वह इसमें सफल नहीं होता है तो सरकार के कार्यों में मीन-मेख निकाल कर अपनी मौजूदगी को साबित करता रहे।

गौरतलब है कि कांग्रेस ने इसका भ्रामक प्रचार किया था कि अगर भाजपा फिर से सत्ता में आई तो वह संविधान बदल देगी। हालांकि इससे पहले देश में कांग्रेस सरकारों के वक्त कितनी बार संविधान बदले गए हैं, उसका विवरण खोजने की कोशिश कितने लोगों ने की होगी। वास्तव में जनता को यह समझना होगा कि नेता अगर अपना स्वार्थ साध रहे हैं तो वह भी अपना स्वार्थ देखे और जनता का स्वार्थ इसमें है कि कौन उसके लिए बेहतर योजनाएं बनाता है। कौन देश को आगे ले जाता है, यह समय भ्रष्टाचार के खात्मे का भी है। जो भी इसके लिए प्रयास करेगा, जनता को उसका साथ देना होगा। विपक्ष को चाहिए कि वह देश के जनादेश का सम्मान करे, वहीं सत्ता पक्ष भी विपक्ष के प्रति विनम्र हो। 

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